भारतीय पारंपरिक खेल
सेवल संडै या सेवाल पोर्र (मुर्गों की लढ़ाई) एक मशहुर ग्रामीण खेल है। मुर्गों के पैरों पर तीन से चार इंच के ब्लेड लगाए जाते है, और विजेता का ऐलान तीन से चार दौरों के बाद किया जाता है जिसमे कोई वर्जित धारण नहीं होता। इस खेल में हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर जुआ शामिल है।
जल्लीकट्टू एक लोकप्रिय पालतू बैलों का खेल है जो पोंगल त्योहार के दौरान विशेष रूप से खेला जाता है। शास्त्रीय तमिल अवधि से जल्लीकट्टू एक लोकप्रिय खेल रहा है। रेकला दौड़ भी एक सामान खेल है जिसमे बैलगाड़ी की दौड़ होती है। मे २०१४ में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पशु कल्याण के मुद्दों का हवाला देते हुए दोनों खेलों पर रोक लगा दी।
गिल्ली दंडा यह खेल एक छोटी लकड़ी (गिल्ली) और एक बड़ी लकड़ी (दंडा) से क्रिकेट के समान खेला जाता है, इसमें गेंद की जगह गिल्ली का इस्तेमाल करते है। यह खेल आज भी कर्नाटक, तमिल नाडु, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात के गावों में लड़कों के बिच मनोरंजन के तौर पर खेला जाता है।
कंचा, कांच की गोल आकर गोटियों से खेला जाता है। यह खेल छोटे बच्चो के बिच बहुत लोकप्रिय है। यह खेल भारत के छोटे शहरों और गावों में सिर्फ छोटे बच्चो के बिच गली के खेल के रूप में प्रचलित है। यह खेल शायद ही कभी लड़कियों द्वारा खेला जाता है। भागीदार को एक सर्कल में रखे कंचो को मरना होता है। अगर वो लक्ष्य को अछी तरह मरता है तो वह जीत जाता है। विजेता को दूसरे भागीदारों के कंचे मिलते है।
पतंगबाजी भारत के शहरों और गावों कई लोगों द्वारा खेली जाती है। मकर संक्रांति का त्यौहार पर पतंगबाजी की कई स्पर्धाए होती है। यह त्यौहार का भारतवासियों में जूनून है।
कुश्ती एक अति प्राचीन खेल, कला एवं मनोरंजन का साधन है। यह प्राय: दो व्यक्तियों के बीच होती है जिसमें खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंदी को पकड़कर एक विशेष स्थिति में लाने का प्रयत्न करता है। भारत में यह खेल खेलते वक्त प्रतिस्पर्धी की पीठ जमींन पर लायी जाती हैं..इस खेल के लिए पहलवान तालीम जाकर विशेष तैयारिया करते हैं
खो-खो एक टैग खेल है, बारह खिलाड़ियों की दो टीमों ने विरोधी टीम के सदस्यों द्वारा छुए जाने से बचना होता है, टीम के केवल 9 खिलाड़ियों को मैदान में प्रवेश करना होता है। यह स्कूलों में खेले दो सबसे लोकप्रिय पारंपरिक टैग खेल में से एक, दूसरा खेल कबड्डी है।