गरुड़ की गाथा Garud ki Gatha
विष्णु भगवान के वाहन गरुड़ के नाम से कौन अपरिचित है | हिन्दू धर्म के इलावा उनका ज़िक्र बौद्द धर्म के ग्रंथों में भी पाया जाता है |जातक कथाओं में भी कई स्थानों पर गरुड़ का नाम पाया जाता है | आईये जानते हैं गरुड़ से जुड़ी हुई कई महत्वपूर्ण बातें |
• गरुड़ एक बहुत ही बुद्धिमान प्रजाति मानी जाती है | पौराणिक काल में गरुड़ का इस्तेमाल सन्देश और लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का काम सौंपा जाता था |ये पक्षी इतने विशाल होते हैं की ये एक हाथी को भी अपनी चौंच में दबा कर उड़ सकता है |गरुड़ की तरह दो और पक्षी थे –जटायु और सम्पाती | दोनों ही दंडकारण्य क्षेत्र में विचरण करते थे | जटायु और रावण के युद्ध में उनके कुछ पंख टूट कर दंडकारण्य में आकर गिरे थे | वहां एक मंदिर इस बात की पुष्टि करता है |
• चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर एक तीर्थ है जिसका नाम है पक्षी तीर्थ |ये तीर्थस्थान वेदगिरी पर्वत के ऊपर स्थित है |ऐसा बताया जाता है की कई सदियों से दोपहर के समय एक गरुड़ का जोड़ा आसमान से उतरता है | पंडित उनके लिए जो भी खाना तैयार करता है उसका सेवन करता है |इसके बाद वह आसमान में उड़ जाता है | ऐसा बताते हैं की शिवजी के श्राप से ब्रह्मा के 8 मानस पुत्र गरुड़ में परिवर्तित हो गए थे |इनमें से 2 सतयुग के अंत में ,2 त्रेता के अंत में और 2 द्वापर के अंत में श्राप मुक्त हो चुके हैं | अब ये दो कलियुग के अंत में श्राप मुक्त हो पायेंगे |
• हांलाकि गरुड़ का जन्म सतयुग में हुआ था उनका ज़िक्र त्रेता और द्वापर युग में भी देखा गया है |दक्ष प्रजापति ने अपनी विनीता नाम की कन्या का विवाह कश्यप ऋषि के साथ किया था | प्रसव के दौरान विनीता ने दो अण्डों को जन्म दिया | एक से अरुण और दुसरे से गरुड़ का जन्म हुआ |जहाँ अरुण सूर्य देव के रथ के सारथि बन गए गरुड़ ने विष्णुजी का वाहन बनना पसंद किया |जटायु और सम्पाती अरुण के पुत्र थे |बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य को छूने की इच्छा से उनकी तरफ उड़ान भरी | ऐसे में जटायु तो बीच में थम गए लेकिन सम्पाती आगे उड़ते ही रही | अंततः औरी के तेज़ से उनके पंख जल गए | बेहोश हो वो चंद्रमा के तट पर गिर गए | चन्द्रमा नाम के एक मुनि ने उन पर दया कर उनका उपचार किया | साथ ही उन्हें आशीर्वाद दिया की त्रेता युग में सीता की खोज में निकले वानरों के दर्शन से पंख दुबारा जम जायेंगे |
• पुराणों में गरुड़ के महारथ के कई किस्से मोजूद हैं |कृषि कश्यप की दो पत्नियाँ थी जो आपस में काफी द्वेष रखती थी |विनीता और कुद्रू नाम की उनकी पत्नियाँ ने कश्यप से बलशाली पुत्रो की मांग की |जहाँ विनीता ने दो पुत्र मांगे कुद्रू ने 100 सर्प पुत्र मांगे जो उनकी हर बात मानें |दोनों बहनों में ये शर्त लगी की जिनके पुत्र ज्यादा बलशाली होंगे वह दुसरे की दासता स्वीकार करेगी | कुद्रू के पुत्रों का जन्म हो गया लेकिन विनीता के पुत्र का जन्म हो ही नहीं रहा था | इस जल्दबाजी में विनीता ने अपने पहले पुत्र का अंडा फोड़ दिया | उसमें से एक अविकसित पुत्र का जन्म हुआ जिसका नीचे का हिस्सा बिलकुल परिपक्व था | ये अरुण थे और निकल के उन्होनें अपनी माँ को श्राप दिया की आप को जल्द ही दासी बनना पड़ेगा | घबरा के विनीता ने दूसरे अंडे को विकसित होने दिया |इस वजह से वह शर्त हार गयी और कुद्रू की दासता स्वीकार करनी पड़ी |काफी समय बाद उस अंडे से एक विशालकाय पक्षी का जन्म हुआ | जब उन्हें अपनी माँ की दासता की बात पता चली तो उन्होनें अपनी माँ की सहायता करने की बात सोची |सर्पों ने उनसे मंथन में निकले अमृत कलश की मांग की |वह अमृत कलश लेने देवताओं के पास पहुंचे | तीन सूत्र सुरक्षा को पार करने के बाद उन्होनें वह कलश चुरा लिया | लौटते में उन्हें विष्णु मिले जिन्होनें उन्हें अपनी सवारी बनने और अमर होने का वरदान दिया | अंत में गरुड़ अमृत कलश ले सर्पों के पास पहुंचे और अपनी माँ को छुड़ा लिया | सर्पों को उन्होनें स्नान कर अमृत पान करने की सलाह दी | जब सर्प वहां से गए तो इंद्र आकर कलश वापस ले गए | इस तरह गरुड़ का वादा भी पूरा हो गया और अमृत भी सुरक्षित बना रहा |
• त्रेता युग में श्री राम और लक्षमण नाग पाश में बंध जाते हैं | ऐसे में गरुड़ को इन बंधनों को खोलने के लिए बुलाया जाता है |गरुड़ पाश को काट कर खोल देते हैं लेकिन उन्हें श्री राम के भगवान होने की बात पर संदेह हो जाता है |उनके इस संदेह को दूर करने के लिए नारद उन्हें ब्रह्मा के पास भेजते हैं |ब्रह्माजी उन्हें शिव के बॉस और शिव उन्हें काकभुशुण्डिजी नाम के एक कौवे के पास भेज देते हैं |अंत में काकभुशुण्डिजी उन्हें श्री राम का चरित्र सुना उनकी दुविधा को दूर करते हैं |
• भगवान विष्णु ने श्री राम और कृष्ण के रूप में अवतार लिया था | उनके कई भक्तों में से गरुड़, सत्यभामा और सुदर्शन चक्र को अपनी तेज़ी,सुन्दरता और शक्ति के ऊपर गर्व हो रहा था |एक दिन भगवान को इस बात की भनक लग गयी | उन्होनें इनका अभिमान नष्ट करने के लिए गरुड़ से कहा की जाओ और हनुमान से कहा की श्री राम और सीता उनसे मिलना चाहते हैं |गरुड़ जल्द ही उड़कर हनुमान के पास पहुंचे | सन्देश मिलने पर हनुमान ने उनसे कहा की वह आ जायेंगे | गरुड़ ने कहा की में श्रीघता से पहुंचा दूंगा तो हनुमान बोले की तुम चलो में आ जाऊँगा | गरुड़ घमंड में वापस चले गए लेकिन जब पहुंचे तो देखा की हनुमान वहां पहले ही आ चुके थे | ये देख उनका गरूर नष्ट हो गया |
इधर श्री कृष्ण ने पुछा की हनुमान तुम्हें दरवाज़े पर किसी ने नहीं रोका तो सुदर्शन चक्र को मुंह से निकाल कर वह कहने लगे की इस ने रोका था लेकिन में तब भी अन्दर आ गया | हनुमान फिर बोले की प्रभु देवी सीता के साथ तो आपको देखा है आज आप किस दासी के साथ बैठे हैं | ये सुन सत्यभामा का सारा घमंड खत्म हो गया |
• घर और मंदिरों में घंटी द्वार पर लगाना आम बात है | लेकिन घंटियों के भी कई प्रकार होते हैं |
• गरूड़ घंटी : गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
• द्वार घंटी : यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है। • हाथ घंटी : पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
• घंटा : यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है। गरुड़ घंटी हिन्दू ,जैन और बौधिक धर्मों में काफी मन से इस्तेमाल होती है |
• गरुड़ ध्वज का पौराणिक कालों से इस्तेमाल होता आया है | गुप्ता शासको के काल में गरुड़ राष्ट्रिय पक्षी चिन्ह हुआ करता था |कर्णाटक के होयसला राजाओं का भी प्रतीक चीन गरुड़ ही था | इसके इलावा इंडोनेशिया, थाईलैंड और मंगोलिया आदि में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में जाना जाता है |थाईलैंड के कई बौद्ध मंदिरों में आपको गरुड़ के निशान देखने को मिल जायेंगे |
• गरुड़ नाम से व्रत रखा जाता है | इसके इलावा गरुड़ पुराण भी काफी प्रचलित है | अगर किसी घर में मृत्यु हो गयी है तो गरुड़ पुराण का पाठ आयोजित किया जाता है |शुरू में इस पुराण में 19000 श्लोक थे लेकिन अब सिर्फ 7000 श्लोकों का जाप किया जाता है |गरूड़ पुराण में ज्ञान, धर्म, नीति, रहस्य, व्यावहारिक जीवन, आत्म, स्वर्ग, नर्क और अन्य लोकों की विस्तृत जानकारी दी गयी है |